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व्याख्यान ३८ वां
क्रियाकुशलतारूप तीसरा भूषण कौशल्यं विद्यते यस्य, क्रियास्वावश्यकादिषु । द्वितीयेतरमाचर्यमेतत्सम्यक्त्वभूषणम् ॥१॥ . भावार्थ:--आवश्यकादिक क्रियाओं में कुशलता को समकित का तीसरा भूषण कहते हैं । भव्य प्राणियों को इसका आदर करना चाहिये । इस विषय में उदायी राजा की निम्न लिखित कथा प्रसिद्ध है।
. उदायी राजा की कथा राजगृह नगरी के राजा कोणिक की पद्मावती नामक रानीने पूर्ण समय पर एक पुत्र प्रसव किया जिसका नाम उदायी रखा गया। एक बार राजा कुणिक उदायीकुमार को अपनी बाई जंघा पर बैठा कर भोजन कर रहा था किउसके आधे भोजन करने पर उस बालकने घी की धारा के सदृश मूत्र धारा राजा की थाली में चलाई । राजाने वत्सलतावश उस बालक को कुछ भी नहीं कहा और जरा भी नहीं हिला क्योंकि उसको भय था कि-उसके हिलने से मूत्र का निरोध हो कर कही बालक को कोई व्याधि उत्पन्न हो बाय । फिर राजाने उस मूत्रमिश्रित भोजन किया । अहो ! मोह का कैसा विलास है ? फिर स्नेह से परवश हुए राजाने