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व्याख्यान ३७ : ।
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पुत्री होकर आप की रानी बनी हूँ। पूर्व भव मैंने इस पुरुष को बहुत कहा था किन्तु इसने मेरे कहने पर किंचित् मात्र भी ध्यान देकर धर्म को अंगीकार नहीं किया इस से यह अभी तक इस अवस्था में है । यह सुन कर वह वृद्ध काष्ठवाहक धर्मानुरागी बना।
देवपाल राजाने अनुक्रम से परमात्मा की पूजा प्रभावना कर तीर्थकरनामकर्म उपार्जन किया और अन्त में प्रव्रज्या ग्रहण कर स्वर्ग सिधारा। -
जैसे रंक देवपालने जिनेश्वर की पूजा के प्रभाव से उसी भव में अश्व, हस्ती आदि सैन्य से व्याप्त राज्य को प्राक्ष किया और जिनमत की प्रभावना कर तीर्थकरनामकर्म उपार्जन किया उसी प्रकार अन्य भव्य प्राणियों को भी जिनधर्म की प्रभावना करनी चाहिये कि-जिस से अक्षय सुख की प्राप्ति हो सके । इत्युपदेशप्रासादे तृतीयस्तंभे सप्तत्रिंशत्तम
व्याख्यानम् ॥ ३७॥