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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर । सब को अपनी अपनी वस्तुऐ लौटा दी तथा सर्व स्त्रियों को बहार निकाल कर जिस जिसकी जो जो स्त्री थी उस उसको सिपुर्द कर दिया। उन में से एक स्त्री उस परिव्राजक के कामण से अस्थि मजा पर्यंत उस पर रागी हो गई थी अतः उसने परिव्राजक के साथ जल मरना निश्चय किया किन्तु अपने स्वामी के पास रहना उसने स्वीकार नहीं किया, इस पर किसी मंत्र के जाननेवालेने उसके स्वामी से कहा कि-यदि उस परिव्राजक की अस्थि को पानी में पीस कर उसको पिलाया जाय तो उस परिव्राजक का किया हुआ कामण दूर हो जायगा और इसको अपनी स्वस्थिति का भान हो जायगा । यह सुन कर उस स्त्री के स्वामीने वैसा ही किया जिससे उसका स्नेह परिव्राजक से हठ कर वापस उसके स्वामी पर हो गया । ___ इस दृष्टान्त का उपनय (तात्पर्य) यह है कि-जिस प्रकार उस स्त्रीने परिव्राजक पर दृढ़ अनुराग किया था उसी प्रकार यदि जैनधर्म पर दृढ़ अनुराग रखा जाय तो अवश्य मोक्षपद की प्राप्ति हो सकती है ।
इस सम्बन्ध में जीर्णश्रेष्ठी की निम्नलिखित कथा भी प्रसिद्ध है
ध्यातः परोक्षेऽपि जिनस्त्रिभक्त्या, जीर्णाभिषश्रेष्ठीवदिष्टसिद्धयै ।