________________
व्याख्यान ३९ वां
अरिहंतादिक के विषय में अंतरंग भक्तिरूप चोथा भूषण. यथार्हमहदादीनां यद्भक्तिरान्तरीयकी । अलंकारश्चतुर्थः स्यात्सम्यक्त्वगुणद्योतकः ॥१॥
"
भावार्थ : - यथायोग्य अहिंसादिक की अभ्यन्तर भक्ति करना सम्यक्त्व गुण का उद्योतक चोथा भूषण कलहाता हैं। धर्म पर अंतरंग प्रीति के विषय में एक स्त्री का दृष्टान्त प्रसिद्ध है
एक स्त्री का दृष्टान्त.
राजपुर नगर में अमिततेज राजा के राज्यत्वकाल में एक परिव्राजक रहता था । वह मंत्रों का जाननेवाला था और विद्या के बल से नगर में सर्वत्र चोरी किया करता था तथा लोगों की स्वरूपवती स्त्रियों का हरण किया करता था । कहा भी है कि
जं जं पासई जुवमणतेणिं, अलिऊलसामलकुंतलवेणिं । भालत्थलअठ्ठमिससिकरणिं, मयणंदोलत्तोलियसवणिं ॥ १ ॥