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व्याख्यान ३८ :
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भी स्थान पर अपनी इच्छा की सिद्धि नहीं हो सकती । वह दुष्ट अभव्य था इस से बारह वर्ष तक आगम का श्रवण किया, कराया और अनेक प्रकार की धर्मक्रिया की परन्तु वह सब निष्फल हुआ ।
उदायी राजा उस प्रकार की धर्मक्रिया में कुशल होने से मृत्यु को प्राप्त कर देवलोक में गया और उसके गद्दी पर नंद राजा बना ।
इस प्रकार बृहद् पृथ्वी को भोगनेवाले श्रीउदायी राजा haaree मनोहर चरित्र को कमल सदृश कर्ण में धारण कर हे पंडित पुरुषों ! तुम भी श्रीजैनधर्म की क्रियाओं में कुशलता प्राप्त कर समकित प्राप्त करो कि जिससे तुम को भी मनोवाञ्छित लक्ष्मी का आनन्दपूर्वक आलिंगन हो सके ।
इत्युपदेशप्रासादे तृतीयस्तंभे अष्टत्रिंशत्तमं व्याख्यानम् ॥ ३८ ॥