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व्याख्यान ३८
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बल से कृत्रिम चौदह रत्न बनाये और कहने लगा कि-मैं इस भरतक्षेत्र में संवृत नामक तेरवां चक्रवर्ती हूँ । इस प्रकार गर्व से भर कर वह वैताढ्य पर्वत की तमिस्रा गुहा के द्वार पर गया और उसके बंद किवाड़ों पर जोर से प्रहार किया। इस से उस गुफा के अधिष्ठायक देव कृतमाल को बड़ा क्रोध हुआ और उसने उसको उसी समय भस्म कर दिया। मंत्रीयोंने उसके बालक राजकुमार उदायी को सिंहासन पर बैठाया । उदायीकुमार भी निरन्तर अपने पिता के स्नेह का स्मरण कर शोकातुर रहने लगा, अतः उसके शोक को दूर करने के हेतु से मंत्रीयोंने नई राजधानी बनाने का विचार कर शिल्पशास्त्र में निपुण शिल्पियों को राजधानी के योग्य क्षेत्र (भूमि) की खोज में भेजा । वे शिल्पी उदयवाली भूमि की खोज करते करते गंगा नदी के किनारे उस स्थान पर पहुंचे कि-जहां अर्णिकासुत नामक मुनि के काल करने पर उसकी अस्थिये पड़ी थी जिस पर एक पाटल नामक वृक्ष उग गया था। उस वृक्ष पर एक तोता बैठा हुआ था उसके मुंह में पतंगिये स्वयमेव आ आकर गिर रहे थे। जिस प्रकार में पतंगिये स्वयमेव आ आकर तोते के आहार के लिये इसके मुंह में प्रवेश करते हैं इसी प्रकार यदि यहां पर नगर बसाया जाय तो उसके राजा के पास शत्रुवर्ग की लक्ष्मी अनायास ही भोगी जा सकेगी अर्थात् प्राप्त हो सकेगी।