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व्याख्यान ३१ :
को उसे तैयार किया । इस पर उसने काष्ठ साधु के उस नगर से विहार करने समय जब राजा आदि अनेकों स्त्री-पुरुष एकत्रित हुए, एक साध्वी का वेष बना मुनि के पास आकर सब के समक्ष जोर से पुकारने लगी के - हे पूज्य ! तुम्हारे . द्वारे रक्खे हुए इस गर्भ को ज्यों का त्यों छोड़ कर तुम विहार करते हो सो अयुक्त है । ऐसा कह कर उसने मुनि के वस्त्र को पकड़ लिया । इस से आश्चर्यचकित हो मुनिने उत्तर दिया कि - हे मुग्धा ! तू व्यर्थ झूठ बोल कर हमे क्यों क्रोधित करती है ? उसने उत्तर दिया कि मैं असत्य भाषण कभी नहीं करती । यह सुन कर शासन की उन्नति के लिये लब्धिवान् मुनिने सब के समक्ष कहा कि - यदि यह गर्भ मेरे द्वारा रक्खा हुआ होगा तो ज्यों का त्यों कायम रहेगा किन्तु यदि मेरे द्वारा रक्खा हुआ नहीं होगा तो यह तत्काल सब के समक्ष उसकी कुक्षि भेद कर निकल पड़ेगा | यह कहते ही वह गर्भ उसकी कुक्षि से निकल कर पृथ्वी पर आ गिरा, अतः भय से कांपती हुई दासीने कहा कि हे पूज्य ! मैंने ब्राह्मणों के कहने से ऐसा अकृत्य किया है अतः मुझे क्षमा कीजिये । ऐसा कह कर वह मुनि के पैरों में लौटने लगी । ब्राह्मण लोग भी कंपायमान हो कर मुनि के पैरों में आ गिरे। फिर राजा आदि के अनुनय विनय से मुनि का क्रोध शान्त हुआ । सर्व लोगोंने मुनि के उपदेश से धर्मतत्व ग्रहण किया और ब्राह्मण
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