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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : राजसभा में आकर मयूर पंडित को कहने लगा कि-"हे क्षुद्र पक्षी! गरुड़ के सामने काले कौए के समान मेरे सामने क्या शक्ति है ? यदि हो तो मेरे समान प्रत्यक्ष बतला, मेरी शक्ति तो मैने तुझे प्रत्यक्ष बतलादी है।" यह सुन कर मयूरने उत्तर दिया कि-"निरोगी को वैद्य से क्या प्रयोजन ? फिर भी तेरे वचन को पूरा करने को तैयार हूँ।" ऐसा कह कर उसने शीघ्र ही एक छुरीद्वारा अपने हाथ पैर काट डाले । फिर चंडीदेवी की स्तुति करने पर प्रथम श्लोक के छठे अक्षर के बोलते ही चंडीदेवीने प्रसन्न हो कर उसके हाथ पैर को ठीक कर उसके सम्पूर्ण शरीर को वज्रमय बना दिया । यह देख कर राजाने आश्चर्यचकित हो मयूर का अत्यन्त सम्मान किया ।
उस समय जैनधर्म के द्वेषी ब्राह्मणोंने राजा से कहा कि-" यदि जैनों में कोई भी ऐसा प्रभावशाली हो तो उन को इस देश में रहने दीजिये; अन्यथा उन सब को अपने देश से बाहर निकाल दीजिये । " यह वचन जब मानतुंग आचार्यने सुना तो उनको जैनशासन के प्रभाव को बतलाने की इच्छा हुई, अतः उन्होने राजसभा में जाकर राजा को उनके शरीर पर चवालीस बेड़िये डालने को कहा तथा एक मकान के अंदर दूसरा और दूसरे में तीसरा इस प्रकार चवालीसवें मकान में जाकर रहे और उन में से प्रत्येक कमरे पर ताला लगवाया। फिर मूरिने भक्तामर स्तोत्र रचा