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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
कर उसने उनको अपने नगर में रहने के लिये आग्रहपूर्वक अनुनय - प्रार्थना कर वहां ठहराया। उसके आग्रह से सूरिने जब तक कि - आमराजा स्वयं बुलाने न आवे तब तक वहां से विहार न कर वहीं रहने की प्रतिज्ञा कर वहीं रहे ।
इस ओर आमराजा को यह सूचना मिली कि गुरु महाराज द्वार पर एक श्लोक लिख कर वहां से विहार कर कहीं अन्यत्र चले गये हैं । यह सुन कर उसने उस श्लोक को पढ़ा और मन में अत्यन्त दुःखी हुआ । एक बार आम राजा एक बन में गया तो वहां उसने एक कृष्ण सर्प को देखा । उसने उस सर्प का मुख दृढ़ मुट्ठी से पकड़ उसको एक वस्त्र से ढक सभा में ला कर सर्व पंडितों से समस्या पूछी किशस्त्रं शास्त्रं कृषिर्विद्याऽन्यद्वा यो येन जीवति ।
शस्त्र, शास्त्र, कृषि (खेती), विद्या अथवा दूसरा क्या कि- जिसके द्वारा मनुष्य जीता है ( अर्थात् ईन सब से क्या करना ? ऐसा इस समस्या का प्रश्न है । )
इस समस्या की किसी भी पंडितने राजा के अभिप्राय ' के अनुसार पूर्ति नहीं की तो राजाने ढिढोरा पिटवाया कि - जो कोई इस समस्या की पूर्ति मेरे मन के अभिप्राय के अनुसार करेगा उसको एक लक्ष स्वर्णमोहर इनाम में दी जायगी । यह सुन कर किसी द्यूतकार ( जुआरिये ) ने सूरि