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व्याख्यान ३५ :
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होकर धर्मराजा के नगर में पहुंचा । प्रातःकाल में जब राजा और सूरि सहित सर्व समा भरी हुई थी तो उस समय आमराजा स्थगीधर का रूप धारण कर अपने अनेकों साथियों सहित राजसभा में पहुंचा । उसको दूर से आता हुआ देख कर सूरिने धर्मराजा से कहा कि-" एते आमनृपा नराः-ये सब आमराजा के आदमी हमको बुलाने के लिये आते हैं।" इतने ही में उन सबोंने सभा में प्रवेश किया। उन में प्रथम स्थगीधर (आमराजा) था जिसको देख कर सूरिने कहा कि-"आगच्छाम-इधर आओं । (इसका गूढ़ अर्थ यह था कि-हे आमराजा ! तुम आओ)। ऐसा बोल कर उसको सन्मान दिया इस पर वह स्थगीधर गुरु की समीप बैठा और इसने गुरु के हाथ में विज्ञप्तिपत्र भेट किया जिसको गुरुने धर्मराजा को बतलाया । धर्मराजाने दूत से पूछा कितुम्हारा आमराज रूपरंग में कैसा है ? इस पर उसने उत्तर दिया कि-हे राजा ! वे इस स्थगीधर के सदृश है। फिर स्थगीधर के हाथ में बीजोरा देख कर गुरुने पूछा कि-यह तुम्हारा हाथ में क्या है ? उसने उत्तर दिया कि-"बीजोरा" (बीजो-रा अर्थात् राजा अर्थात् मैं दूसरा राजा हूँ) फिर इसने तुअर के पत्र में लिपटा हुआ पत्र दिखाया जिसको देख कर राजाने गुरु से पूछा कि-यह क्या है ? गुरुने स्थगीधर की ओर संकेत कर कहा कि-" तुअरि