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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर: दासीने यह बात अभयकुमार को जाकर कहा तो उसने उसके अन्तःपुर से लगा कर राजगृह नगर तक एक सुरंग बनवाई और अपने पिता को उस मार्ग से एक निश्चित दिन को वहां आने को कहलाया। उसी दिन राजा श्रेणिक अपने बत्तीस अंगरक्षको सहित वहां आ पहुंचे। उसके वहां आने की सूचना पाकर मोहित हुई सुज्येष्ठाने श्रेणिक के साथ जाने की तैयारी की। उसी समय उसकी छोटी बहिन चेलणाने आकर कहा कि-हे बहिन ! मेरा भी यह ही स्वामी हो ! इस प्रकार दोनों बहिने सुरंगद्वार पर खड़ी हुई किसुज्येष्ठाने अपने आभूषणों का कंडिया (Box ) भूल जाने से लेने जाने को उत्सुक हो कर कहा कि-“हे बहिन ! मैं मेरे अलंकार का कंडिया लेने जाती हूँ अतः मेरे बिना लौट तू आगे न जाना ।" ऐसा कह कर वह ज्योहिं वापस लौटी कि-सुलसा के पुत्रोंने जो राजा श्रेणिक के साथ आये थे कहा कि-"हे स्वामी ! शत्रु के गृह में अधिक ठहरना अयुक्त है।" यह सुन कर राजा चेलणा को लेकर चल दिये । थोड़ी देर पश्चात् सुज्येष्ठा अपना कंडिया लेकर आई परन्तु राजा तथा अफ्नी बहिन आदि किसी को नहीं देख कर इर्ष्या से भर चिल्लाने लगी कि-"दौड़ो, दौड़ो, मेरी बहिन चेलणा को कोई हर कर ले जाता है।" यह सुन कर चेटक राजा का सैन्य शीघ्रतया दौड़ आया और उसी सुरंग से श्रेणिकराजा का पीछा पकडा । श्रेणिक के पास पहुंचने पर