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व्याख्यान ३६
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रोगी साधुओं के लिये औषधि बनाने को लक्षपाक तैल की आवश्यकता है सो दे । " यह सुन कर अत्यन्त हर्षित हो सुलसा घर में दौड़ी और लक्षपाक तैल का सिसा ला कर उनको बहराने लगी कि उस देवने दैवी शक्ति से उसके हाथ से सिसे को नीचे गिरा कर फोड़ डाला, अत: सुलसा दूसरा सिसा लाई परन्तु उसको भी उस दैवने उसी प्रकार फोड़ डाला । इस प्रकार वह बारी बारी से सात सिसे लाई और देवने सातों सिसों को फोड़ डाला किन्तु फिर भी जब उसके भाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ तो देव अत्यन्त प्रसन्न हो, प्रत्यक्ष हो कहने लगा कि - 'हे भद्रे ! मैं हरिनै - गमेषी देव तेरी परीक्षा करने को आया था किन्तु तेरी दृढ़ भावना देख कर मैं तेरे पर प्रसन्न हूँ अतः तू कोई वरदान मांग । " इस पर सुलसाने उत्तर दिया कि - " हे देव ! यदि आप मुझ से प्रसन्न हैं तो मुझ नीपूती को एक पुत्र प्रदान कीजिये । " यह सुन कर उस देवने हर्षित हो उसे बत्तीस गोलियें देकर कहा कि - " इन में से तू एक एक गोली को खाना कि जिस से एक एक गोली के साथ तू एक एक पुत्र प्रसव करेगी । " ऐसा कह कर उन टूटे हुए सिसों को वापीस ठीक कर वह देव स्वर्ग को लौट गया ।
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सुलसाने ऋतुस्नात होने पर विचार किया कि इन गुटिकाओं एक एक कर खाने से तो बत्तीस वक्त गर्भ तथा
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