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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
रह | यह सुन कर वह बालक उनके पास रहने लगा । सूरि ने उसको विद्याभ्यास कराना शरु किया तो वह सदैव एक हजार श्लोक कंठस्थ करने लगा। उसकी ऐसी तीव्र बुद्धि देख कर गुरु उस पर अत्यन्त प्रसन्न हुए और उसके मातापिता को बुलवा कर उसे दीक्षित किया । उस समय उसके माता पिताने उनका नाम रखने की प्रार्थना की इस पर उसका नाम बप्पभट्टी रक्खा गया । गुरुने बाद में उसको सरस्वती देवी का मंत्र सिखाया जिसके यथाविध जाप करने से देवीने प्रत्यक्ष होकर उसे वरदान दिया और अदृश्य हो गई ।
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एक बार बप्पभट्टी मुनि देवकुल ( देरासर) में जा कर प्रभु की स्तुति कर रहे थे कि - गोपगिरी ( ग्वालीयर गढ़ ) के राजा यशोवर्मा का आम नामक कुमार अपने पिता से क्रोधित होकर उनके पास आया और बप्पभट्टी के साथ साथ प्रशस्ति काव्य पढ़ने लगा | आम कुमार के रसिक होने से बप्पट्टी के साथ उसका अत्यन्त प्रेम हो गया । फिर वह बप्पभट्टी के साथ उपाश्रय में आया और वहां गुरु के पूछने पर अपना सम्पूर्ण वृत्तान्त उन्हें कह सुनाया । उसमें अपने नाम बतलाने का समय आने पर उसने खड़िया ( Chalk ) द्वारा अपना नाम लिख कर गुरु को बतलाया परन्तु अपने मुंह से अपने नाम का उच्चारण नहीं किया इस से गुरु उस पर अत्यन्त प्रसन्न हुए । गुरुने बप्पभट्टी के साथ साथ उस