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व्याख्यान ३५ :
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जिसके एक एक श्लोक के उच्चार पर एक एक बेड़ी टूटने लगी और एक एक ताला टूट कर एक एक कमरा खुलने लगा । अन्त में चवालीसवें श्लोक के बोलने पर सर्व बेड़िये तथा सर्व ताले टूट गये जिस से सूरिमहाराज सभा में आ पहुंचे और जैनशासन का बड़ा भारी प्रभाव प्रगट हुआ । इस विषय पर बप्पभट्टसरि का प्रबन्ध भी इस प्रकार है कि
बप्पभट्टसूरि का प्रबन्ध मोढ़ेरा ग्राम में सिद्धसेनमूरि जब श्री वीरस्वामी. को वांदने के लिये पधारे तो उनके पास एक छ वर्ष का बालक आया जिस को उन्होंने पूछा कि-तू कौन है ? और कैसे आया है ? इस पर उस बालकने उत्तर दिया कि-पांचाल देश में डूब नामक एक ग्राम है जिस में बप्प नामक एक क्षत्रिय रहता है जिस को भट्टी नामक एक स्त्री है, मैं उसका सूरपाल नामक पुत्र हूँ। मैं जब मेरे पिता के शत्रु को मारने को तैयार हुआ तो मेरे पिताने मुझे ऐसा करने से रोक दिया
और वह स्वयं उसके शत्रु को मारने को गया, इस से मुझे बड़ा क्रोध आया, अतः मैं गुस्से में भर कर बिना मेरी माता को कहे ही यहां चला आया हूँ । यह सुन कर सरिने विचार किया कि-यह बालक कोई तेज (प्रतापी) मनुष्य होकर कोई दैवी अंशवाला जान पड़ता है । अत: गुरुने उस से कहा कि-हे वत्स ! यदि ऐसा है तो तू हमारे पास