________________
व्याख्यान ३५ :
: ३१७ :
इन तीन पदों को सुनते ही बाण बोल उठा किकुचप्रत्यासत्त्या हृदयमपि ते चण्डि ! कठिनम् ॥ " हे चन्डिका ! (क्रोधी स्त्री ! ) स्तन के पास रहने से तेरा हृदय भी उनके सदृश कठीन हो गया है
।
99
इस प्रकार अपने भाई के मुंह से चोथा पद सुन कर क्रोध तथा लज्जा से भर कर उस पतिव्रता स्त्रीने उसको शाप दिया कि - " तू कुष्ठी होजा " इस से बाण शीघ्र ही कुष्ठी हो गया | प्रातःकाल जब वे दोनों पंडित राजसभा में एकत्रित हुए तो मयूरने बाण को कुष्ठी कह कर पुकारा इस से बाणने अत्यन्त लज्जित हो सभा से उठ कर नगर के बाहर जा कर एक बड़ा स्तंभ खड़ा किया | उसके साथ एक काष्ठ बांध कर नीचे एक बड़ा खड़ा खोद कर उस में खेर के अंगार भर दिये । फिर स्तंभ के सिरे पर बांधे हुए काष्ठ में झूला डाल कर वह उस में बैठा और नये श्लोकद्वारा सूर्य की स्तुति करने लगा | एक श्लोक बोल कर झूले की एक डोरी को काट डाला । इस प्रकार पांच श्लोक बोल कर उसने पांच डोरियों को काट डाला । अन्त में छट्ठे श्लोक बोलने पर छट्ठी डोरी को काटने से झूला तमाम टूट जाने से वह खेर के अंगार में पड़ने की तैयारी में था कि सूर्यने प्रत्यक्ष हो कर उसके देह की व्याधि को हटा कर उसे बना दिया। फिर दूसरे दिन बाण पंडित बड़े
स्वर्ण सदृश आडम्बर से