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व्याख्यान ३५ :
: ३१५ :
वाली उपमितिभवप्रपंच नामक कथा बना कर अन्त में दोनों सूरि स्वर्ग सिधारे ।
शास्त्ररूप मंदिर का निर्माण करने में सूत्रधार समान श्रीहरिभद्रसूरिने कुशास्त्र और कुदेव का त्याग कर पूज्यपद को प्राप्त किया वे गुरुमहाराज हमको कविता के विषय में उत्तम शक्ति प्रदान करें ।
इत्युपदेशप्रासादे तृतीयस्तंभे चतुस्त्रिंशत्तमं
व्याख्यानम् ॥ ३४ ॥
व्याख्यान ३५ वां
दूसरे अतिशयवाले कवि का स्वरूप सातिशयाढ्य काव्यानां, भाषणे कुशलीभवेत् । सोऽप्यत्र शासने ज्ञेयो, विस्मयकृत्प्रभावकः ॥१॥
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भावार्थ:- अतिशय युक्त वाक्य कहने में जो चतुर हो उसको भी जैनशासन में विस्मयकारक प्रभावक कहा गया है । इस विषय पर निम्नस्थ मानतुंगसूरि का प्रबंध हैमानतुंगसूरि का प्रबन्ध
धारानगरी में बाण और मयूर नामक दो विद्वान् पंडित रहेते थे । बाण मयूर का साला था । उन दोनों में ऐसा नजदीकी सम्बन्ध होने पर भी वे परस्पर एक दूसरे