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व्याख्यान ३५ :
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को भी शास्त्राभ्यास कराया। एक बार आम कुमारने अपने मित्र बप्पभट्टी मुनि से कहा कि-मुझे जब राज्य मिलेगा तो वह राज्य मैं तुम्हें दे दूंगा । फिर उसे राज्य मिलने पर उसने बप्पभट्टी को बुलवा कर सिंहासन पर बैठने की प्रार्थना की। इस पर बप्पभट्टीने उत्तर दिया कि-हम को सूरि पद मिलने के पश्चात् सिंहासन पर बैठने का अधिकार है । उसके पहले हम नहीं बैठ सकते । यह सुन कर उसने श्रीसिद्ध. सेनसूरि से प्रार्थना कर उसे सूरिपद प्रदान कराया। फिर बप्पभट्टीसरि को सिंहासन पर बैठा कर राजाने प्रार्थना की कि-हे स्वामी ! यह राज्य आप ग्रहण कीजिये । सूरिने उत्तर दिया कि-हे राजा ! जब हम अपने देह के विषय में भी निःस्पृह हैं तो फिर हमें राज्य से क्या प्रयोजन ? यह सुन कर राजा को अत्यन्त आश्चर्य हुआ और उसने गुरु के उपदेश से एक सो आठ हाथ ऊँचा एक जैन प्रासाद बना कर उस में अढारह भार स्वर्ण की श्रीमहावीरस्वामी की मूर्ति को स्थापित किया । ___ एक बार राजाने अपनी राणी का म्लान मुख देख कर इस विषय में गुरु से समस्या पूछी कि-"अजवि सा परितप्पड़, कुमलमुही अप्पणो पमाएण" (वह कमलमुखी स्त्री अभी तक अपने प्रमाद से परितापित है)। यह