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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : पहुंचा किन्तु वहां थकान के मारे किसी स्थान पर विश्राम के लिये सो रहा। जहां बौद्ध सैनाने आकर उसको भी मारडाली । इस वृतान्त को सुन कर हरिभद्रसरि अत्यन्त कोपा. यमान हुए अतः उबाले हुए तैल की कड़ाही में चौदह सो चवालीस बौद्धों का होम करने के लिये उनको आकर्षण करने को मंत्रजाप करने लगे। उनके गुरुने यह वृत्तान्त सुन कर निम्न लिखित गाथा लिख दो साधुओं को पास भेजा । उन्होंने वह गाथा सूरि को जाकर सुनाई कि
गुणसेन अग्गिसम्मा, सीहाणंदाय तह पिआ पुत्ता । सिहि जालिणी माइ सुओ, धण धन्नसिरिमो अ पइभज्झा ॥१॥ जय विजयाय सहोयर, धरणो लच्छी अ तहपइभजा । सेण विसेणा पित्ति, उत्ता जममि सत्तमए ॥ २ ॥
१ इन दोनों की मृत्यु का वर्णन अन्यत्र अन्य प्रकार से भी वर्णित है।