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व्याख्यान ३४:
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कि-हे पूज्य ! हम बौद्ध धर्म के शास्त्र का रहस्य जान कर उनका पराजय करना चाहते है अतः हम को उनके पास ज्ञानोपार्जन के लिये जाने की आज्ञा प्रदान कीजिये । सूरिने वेषान्तर कर जाने की आज्ञा प्रदान की अतः इस लिये वे दोनों वेष परिवर्तन कर बौद्धशाला में जाकर बौद्धशास्त्रों के पारंगत बनें। एक बार बौद्ध गुरु को उनकी क्रिया प्रवृत्ति देख कर यह शंका उत्पन्न हुई कि-ये श्वेताम्बरी जान पड़ते हैं अतः इसकी पुष्टि के लिये जब सब छात्र विद्याभ्यास कर रहे थे उसने जीने (staircase) के पगथीये पर खड़िया (Chalk) द्वारा अहंत का चित्र बनाय दिया । लौटते समय सर्व छात्र उस बिंब पर पैर रख रख कर उतरे परन्तु उन दोनों छात्रोंने तो प्रथम उस बिंब के कंठ पर तीन रेखा बनाई व तत्पश्चात् उस पर पैर रख कर उतरे । इसके पश्चात् उन दोनों को भय उत्पन्न हुआ किअवश्य इसने हमारा श्वेताम्बरी होना जान लिया है अतः अब हमारा यहां अधिक रहना अनुचित है । ऐसा विचार कर वे दोनों अपनी अपनी पुस्तकें उठा कर वहां से चल दिये। उनके भग जाने की खबर सुन कर गुरुआज्ञा से वहां के बौद्ध राजाने उनको पकड़ने के लिये उनके पीछे अपनी सैना को दौडाया । हंसने मुकाबला होने पर सैन्य के बहुत बड़े भाग को मार डाला किन्तु अन्त में वह भी खेत रहा । परमहंस भगता हुआ चित्रकूट के समीप तक आ