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व्याख्यान ३३ :
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सदैव पादलेप विद्याद्वारा पांचो तीर्थों में जा वहां के जिनबिंबों को वन्दना कर तत्पश्चात् भोजन करना आरम्भ किया।
एक बार सूरि ढंकपुर गये वहां अनेकों लोगों को वश में करनेवाला नागार्जुन नामक योगी सूरि के पास जा उन से विद्या सिखने की इच्छा से श्रावक बन निरन्तर उनके चरणों की सेवा करने लगा। निरन्तर गुरु के चरणकमलों की सेवा करने से औषधियों की गन्ध से एक सो सात
औषधियों को उसने पहचान लिया। फिर उन सब औषधियों को जल में मिलाकर उनका लेप कर आकाश में उड़ना चाहा परन्तु थोडी दूर उड़ कर वह इधर उधर वापस गिरने लगा इस से उसके शरीर पर कई स्थान पर निशान बन गये । गुरुने उसको देख कर उस से पूछा कि-हे भद्र ! तेरे शरीर पर यह निशान किस के हैं ? इस पर योगीने सब हाल सचसच गुरु से निवेदन किया। उसकी सत्यता तथा बुद्धि से रंजित हो गुरुने उसको शुद्ध (सत्य) श्रावक बनाया। विहार समय गुरुने उससे कहा कि-हे श्रावक ! यदि तुझे आकाश में उड़ने की इच्छा हो तो एक सो सात औषधियों को साठी चोखा के ओसामण में एकत्र कर उसका लेप करना कि-जिस से स्खलना न हो । इस प्रकार गुरुवचन से अपना मनोरथ पूर्ण कर वह अपने स्थान को लौट गया।
एक बार उस नागार्जुनने बहुत सा द्रव्य खर्च कर स्वर्णसिद्धि प्राप्त की और गुरु के उपकार का प्रत्युपकार