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व्याख्यान ३३ :
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हे राजा ! हमारे ग्रन्थ को सुनियें । राजाने इतने बृहद् ग्रन्थ को सुनने का अवकाश नहीं होना कहा। इस पर उन्होंने पचास पचास हजार श्लोकें के ग्रन्थ बनाये किन्तु फिर भी राजाने बार बार इतने बृहद् ग्रन्थ के सुनने में आनाकानी की तो अन्त में वे एक एक श्लोक बना कर लाये । इस पर राजाने अनुमति प्रदान की तो सर्व प्रथम आत्रेय नामक ऋषिने चिकित्सा (वैदक ) शास्त्र के रहस्यरूप एक पद का उच्चारण किया कि - " जीर्णे भोजन मात्रेयः " अर्थात् एक चार का खाया हुआ भोजन पचजाने पर दूसरी बार भोजन करना चाहिये । तत्पश्चात् कपिलने कहा कि - " कपिल : प्राणिनां दया " प्राणी मात्र पर दया करना ही सच्चा धर्म हैं । इस पर कपिलने धर्मशास्त्र का सार बतलाया । तत्पश्चात् बृहस्पतिने नीतिशास्त्र का सार बतलाया कि - " बृहस्पतिरविश्वासः " अर्थात् बृहस्पति का कहना है कि किसी का विश्वास नहीं करना चाहिये । चोथे पंचालने कामशास्त्र का रहस्य बतलाया कि - " पाञ्चालः स्त्रीषु मार्दवम् " अर्थात् पांचाल का कहना है कि स्त्रियों के प्रति मृदुता ( कोमलता ) रखना चाहिये । इस प्रकार चार लाख श्लोकों का रहस्य केवल मात्र एक श्लोक में ही बतला दिया । जिस को सुन कर राजाने उनका बड़ा आदरसन्मान कर बारंबार उनकी प्रशंसा की । उस समय राजरानी भोगवतीने कहा कि