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व्याख्यान ३२ :
: २९३ : के पूर्वजों को प्रत्यक्ष किये । उन देवताओं और पूर्वजोंने कहा कि-हे वत्स ! तू देवबोधि की आज्ञानुसार वर्तन कर.। यह सुन कर जब राजा विस्मय के मारे जड़ बन गया तो उदयन मंत्रीने कहा कि-हे राजा ! हेमसूरि भी अनेक विद्या में कुशल है । इसलिये राजा प्रातःकाल देवबोधि आदि को लेकर सूरि के पास वन्दना करने को गये । उस समय हेमचन्द्रसूरि शरीरस्थ पांचों (प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान) वायु को रोक कर आसन से कुछ ऊपर उठ कर व्याख्यान देने लगे। उस समय पूर्व से संकेत पाये हुए शिष्योंने सूरि के नीचे से आसन हटा लिया। अतः सूरि जमीन से बहुत ऊँचे उठ व्याख्यान देने लगा। यह देख कर राजा आदि को बड़ा आश्चर्य हुआ। फिर भूरि महाराजने "हमारे देवों को देख" ऐसा कह कर कुमारपाल राजा को एक मकान में ले गये । वहां समवसरण में स्थित चोवीश तीर्थंकरों की पूजा करते हुए उसके इकवीश पीढ़ी के पूर्वजों को उसे बतलाया। वे (तीर्थकर ) बोले कि-दयाधर्म का पालन करने से तुम विवेकी हो, ये हेमसूरि तेरे गुरु हैं अतः उनकी आज्ञा का पालन करना, तथा उसके पूर्वजों ने भी कहा कि-हे वत्स ! तू ने जैनधर्म को स्वीकार किया इसलिये हमे सुगति के भाजन हो कर ऐसी महाऋद्धि को प्राप्त किया है। ऐसा कह कर वे सब अन्तर्ध्यान हो गये। यह देख कर किंकर्तव्यविमूढ़ हो राजाने सूरि से पूछा