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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
प्रकार के अनेकों अन्य प्रबन्ध कुमारपाल चरित्र में पढ़िये । फिर सूरि भी अनुक्रम से अनेकों भव्य जीवों के प्रतिबोध कर तथा जैनधर्म की प्रभावना कर स्वर्ग सिधारे ।
विद्यारूप कान्तिवाले, जैनधर्मरूप जगत में सूर्य समान, अज्ञानरूप अन्धकार का नाश करनेवाले और चौलुक्य वंश में सिंह समान कुमारपाल राजा को प्रतिबोध करनेवाले श्री हेमचन्द्र गुरु को मैं नमन करता हूँ। इत्युपदेशप्रासादे तृतीयस्तंभे द्वात्रिंशत्तमं
व्याख्यानम् ॥ ३२ ॥
व्याख्यान ३३ वां
सातवां सिद्धप्रभावक विषय में अञ्जनचूर्णलेपादिसिद्धियोगैः समन्वितः । जिनेन्द्रशासने पत्र, सप्तमः स्यात्प्रभावकः ॥१॥ ___ भावार्थ:--अंजन, चूर्ण और लेप आदि सिद्धि किये हुए योगों से युक्त हो उनको जिनशासन में सातवें प्रभावक कहते हैं । अर्थात् शासन की उन्नति के लिये जो अंजनादिक का उपयोग करें उन्हें सिद्ध प्रभावक कहते हैं। इस श्लोक का भावार्थ श्री पादलिप्तसूरि के दृष्टान्तद्वारा दृढ़ किया गया है।