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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : कि-हे महाराज ! देवबोधिने बतलाया उसे सत्य मानु या इसको ? इस विषय में मेरा मन डावाडोल है । सूरिने उत्तर दिया कि-हे राजा ! प्रथम देवबोधिने जो तुझे बतलाया तथा मैंने जो तुझे अभी बतलाया यह सब इन्द्रजाल है। आकाशपुष्प के सदृश असत्य ही है; परन्तु तत्त्व तो तुझे सोमेश्वर महादेवने बतलाया वह ही है । यह सुन कर राजा मिथ्यात्व का त्याग कर अनुक्रम से बारह व्रतधारी हुआ ।
भविष्य में आश्विन मास के आने पर नवरात्रि के दिन देवी के पूजारियोंने आकर राजा से कहा कि-हे राजा ! कुलदेवी के सामने बलिदान के लिये सातम के दिन सात सो, आठम के दिन आठ सो और नवमी के दिन नो सो पाड़ो के वध करने का तेरा वंशपरंपरागत नियम है अतः यदि ऐसा नहीं करेगा तो देवी विघ्न करेगी । यह सुन कर राजाने यह सब हाल सूरि को जाकर कहा जिसने उत्तर दिया किहे राजा ! जिस दिन जितने प्राणी मारे जाते हैं उस दिन उतने ही प्राणी उस देवी के सामने धर कर कहेना कि-हे देवी ! इन शरण रहित प्राणियों को तुम्हारे सामने रखता हूँ अतः तुझे जेसा उचित प्रतीत हो वैसा करना । राजाने सूरि के कथनानुसार ही किया अतः देवीने एक भी प्राणी का भक्षण नहीं किया। परन्तु नवमी की रात्री को हाथ में त्रिशूल धारण करनेवाली कंटेश्वरी देवीने प्रत्यक्ष होकर