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व्याख्यान ३१ :
: २८५ .
तेरे
पुत्र
"
को मार कर उसके पेट से मुर्गी का मस्तक निकाल कर मुझे खाने को नहीं देगी तो हमारी प्रीति का भंग होगा और भविष्य में मैं तेरे साथ प्रीति नहीं रखूंगा । वज्राने वैसा ही करना स्वीकार किया ( कामी पुरुष क्या क्या अकार्य नहीं कर बैठते १ ) यह बात उस पुत्रकी धात्री ( धाय) के कान तक पहुंची तो वह उस पुत्र की रक्षा के लिये उसे लेखशाला से लेकर सिधी ही ग्राम के बाहर निकली और अनुक्रम से चलती हुई पृष्ठचंपानगरी के उद्यान में पहुंची । उस समय उस नगरी के राजा पुत्र रहित मृत्यु को प्राप्त हो जाने से प्रधानोंने पंच दिव्य किये थे । उन पंच दिव्योंने उद्यान में सोते हुए उस पुत्र को प्रणाम किया अतः प्रधानोंने उसका राज्याभिषेक किया और वह उस धात्री सहित वह रहां कर राज्य का पालन करने लगा ।
कुछ समय पश्चात् काष्ठ श्रेष्ठी जब परदेश से लोट कर घर आया तो उसने पुत्र, धात्री, मैना और मुर्गी इन चारों को न देख कर तोते से पूछा तो उसने उत्तर दिया कि - हे श्रेष्ठी ! मुझे पींजरे से बाहर निकालो कि मैं निर्भय होकर तुम को सब वृत्तान्त सुना सकुं । श्रेष्ठीने जब उसको पींजरे से बाहर निकाला तो उसने वृक्ष पर बैठ कर वज्रा तथा ब्राह्मण के अयोग्य सम्बन्ध की सर्व बात कह सुनाई जिस को सुन कर श्रेष्ठी को वैराग्य हो गया और उसने तुरन्त ही दीक्षा ग्रहण की ।