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व्याख्यान ३१ :
: २८३ : पाले हुए तोता, मेना और मुर्गा ये तीन पक्षी थे। उस श्रेष्ठीने एक ब्राह्मणपुत्र को घर की देखरेख के लिये रक्खा था। एक बार श्रेष्ठी अपने घर का भार उसकी स्त्री तथा मेना को सौंप कर लक्ष्मी उपार्जन निमित्त परदेश गया। पिछे से ब्राह्मणपुत्र के युवा होने पर वजा उसके साथ विषयसुख भोगने लगी । एक वार उन दोनों को विषयासक्त देखकर मैनाने तोता से कहा कि-पापकर्म में रत्त इन दोनों को हमे शिक्षा देनी चाहिये । इस पर तोताने कहा किउपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये । पयःपानं भुजंगाना, केवलं विषवर्धनम् ॥१॥
भावार्थ:--मूर्ख को उपदेश देना उसको शान्ति पहुंचाने के स्थान में उस से झगड़ा मोल लेना है क्यों किसर्पको दुध पिलाना केवल उसके विष की वृद्धि करना मात्र है।
अतः हे प्रिया! यह समय उनको उपदेश करने योग्य नहीं है । इस पर मैनाने उत्तर दिया कि-यदि सत्य बोलने से कदाच मेरी अकाल मृत्यु भी होजाय तो मैं उसे श्रेष्ठ समझती हूँ परन्तु इस पिता तुल्य श्रेष्ठी के घर में ऐसा अकार्य होते देखना अश्रेष्ठ है कि-जिस को मैं नहीं देख सकती । इस प्रकार उन मैना को बोलते हुए सुन कर वज्राने