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व्याख्यान २९ :
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भावार्थ:-स्वयं ज्ञान को प्रगट करनेवाले, ज्ञानरूपी हजारों नेत्र के धारक, अनेक गुणों से युक्त, अद्वितीय और अविनाशी भावलिंग के धारक, अव्यक्त, समस्त जीवों को व्याघात नहीं करनेवाले, आदि, मध्य और अन्त रहित तथा पुन्य पाप रहित हे देव ! तुम को नमस्कार हो।
इत्यादि काव्योंद्वारा सूरिने श्री महावीरस्वामी की बत्तीस बत्तीसीद्वारा स्तुति की। फिर बड़े महिमावाले श्री पार्श्वनाथस्वामी की स्तुति की जिस में कल्याणमंदिर नामक स्तोत्र के गयारवां काव्य को बोलने पर वह शिवलिंग फट गया और उसके अन्दर से बीजली के सदृश कान्तिवान श्री अवन्ति पार्श्वनाथ का बिम्ब प्रगट हो गया जिस को देख कर विस्मित हुए राजा विक्रमने सूरि से पूछा कि-हे स्वामी! इस देव को किसने निर्माण किया है ? सूरिने उत्तर दिया कि- यह अवन्ति नगरी में ही भद्रश्रेष्ठी की भद्रा नामक स्त्री से उत्पन्न हुआ अवंतीसुकुमाल नामक पुत्र था। इसके युवा होने पर इसके मातापिताने इसका बत्तीस स्त्रियों के साथ विवाह किया। उन सर्व के साथ कामविलास करते हुए वह काल निर्गमन करता था कि-एक बार जब वह गवाक्ष में बैठा हुआ था तो उसने आर्य सुहस्तीसूरि के मुंह से नलिनीगुल्म विमान के वर्णनवाला अध्ययन सुना, जिस से उसको जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसने सूरि को जाकर पूछा कि-हे स्वामी! क्या तुम नलिनीगुल्म विमान से यहां आये