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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : हो ? गुरुने उत्तर दिया कि-नहीं, परन्तु उसका स्वरूप हम श्रीसर्वज्ञ के कहे वचनों(शास्त्रों द्वारा जानते हैं । उसने पूछा कि-हे गुरु ! उस विमान की प्राप्ति क्यों कर हो सकती है ? गुरुने उत्तर दिया कि-चारित्र से उसकी प्राप्ति हो सकती है । यह सुन कर उसने तुरन्त ही दीक्षा ग्रहण की परन्तु सदैव तपस्या करने में अशक्त होने से उसने गुरु की आज्ञा लेकर स्मशान में जाकर अनशन ग्रहण किया । उस समय उसकी पूर्व भव की अपमानित स्त्री जो शीयालणी होगई थी वह उसके बच्चे सहित वहां आई और पूर्व भव के वैर के कारण उस मुनि के शरीर को नोंच नोंच कर खाने लगी। तीन प्रहर में उसने समस्त शरीर को खाडाला अर्थात् चोथे प्रहर में वह मुनि शुभ ध्यान के योग से मृत्यु प्राप्त कर नलिनीगुल्म विमान में उत्पन्न हुए । प्रातःकाल वह सर्व वृत्तान्त सुन कर उसकी माता भद्राने वैराग्य से अवंती सुकुमाल की एक गर्भिणी स्त्री को छोड़ कर शेष इकत्तीस स्त्रियों सहित दीक्षा ग्रहण की। उचित समय पर गर्भिणी स्त्रीने पुत्र प्रसव किया, जिसने अपने पिता के मृत्युस्थान पर यह प्रासाद बना कर इस में यह पार्श्वनाथस्वामी का बिंब स्थापन किया था किन्तु अनुक्रम से कुछ समय पश्चात् ब्राह्मणोंने इस बिंब पर शिवलिंग स्थापन कर दिया था इसलिये हे राजा! वह शिव हमारी की हुई स्तुति को क्यों कर सहन कर सकता है ? यह वृत्तान्त सुन कर राजा बहुत खुश हुआ