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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : वराह गर्व के कारण श्वेताम्बरों पर द्वेष रख निरन्तर उसकी निन्दा किया करता था। इस रातदिन होनेवाली निन्दा से उकता कर कुछ श्रावक भक्तोंने भद्रबाहुस्वामी को देख कर उत्सवपूर्वक उस नगर में प्रवेश कराया जिन का आगमन सुन कर वराह को बड़ा भारी खेद हुआ। कुछ दिन पश्चात् राजा के एक पुत्र उत्पन्न हुआ । वराहने उसकी जन्मपत्रिका बना कर उसको सौ वर्ष की आयु होना कहा । अन्य पंडितोंने भी उसके शुभ योगों का वर्णन किया जिस को सुन कर जब राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ तो वराहने कहा कि-हे राजा! आप के घर पुत्रप्रसव का हर्ष प्रगट करने के लिये ग्राम के सर्व लोग आगये हैं किन्तु इर्षालु भद्रबाहु श्वेताम्बर नहीं आया है अतः उस हर्ष रहित भद्रबाहु को निर्वासित का दंड देना चाहिये । यह सुन कर राजाने अपने मंत्री को सूरि के पास भेज कर उसके नहीं आने का कारण पूछा इस पर सूरिने उत्तर दिया कि-दो वक्त आने जाने का कष्ट क्यों करना चाहिये क्यों कि-आज के सातवें दिन उस पुत्र की बिल्ली के मुंह से मृत्यु होगी। भंत्रीने यह बात राजा को जाकर निवेदित किया । उस पर राजाने पुत्र की रक्षा के लिये ग्राम की समस्त बिल्लियों को नगर के बहार निकाल देने की आज्ञा दी । सातवें दिन जब राजपुत्र को उसकी धाय दरवाजे में बैठी हुई दूध पिला रही थी कि-एकाएक उस दरवाजे की अर्गला जिस को