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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : व्याख्यान ३० वां निमित्त शास्त्र के जानकार चोथे प्रभावक के
विषय में योऽष्टांगनिमित्तानि, शासनोन्नतिहेतवे । प्रोच्यते प्रयुज्यमानश्चतुर्थोऽयं प्रभावकः ॥१॥
भावार्थ:-अष्टांग निमित्त का शासन की उन्नति के लिये उपयोग करनेवाले मुनि चोथे प्रभावक कहलाते हैं । इस प्रसंग पर भद्रबाहुस्वामी का दृष्टान्त प्रसिद्ध है
भद्रबाहुस्वामी का दृष्टान्त दक्षिण देश में प्रतिष्ठानपुर नगर के भद्रबाहु और वराहमिहर नामक दो पंडित भाइयोंने यशोभद्रसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की। अनुक्रम से ज्येष्ठ भ्राता भद्रबाहु के चौदह पूर्व का अभ्यास करने से गुरुने उसे सूरिपदवी प्रदान की । उसने दशवैकालिक, आवश्यक आदि दस सूत्रों पर नियुक्ति की । एक बार वराहमिहरने ज्ञान के गर्व से अपने ज्येष्ठ भ्राता को उसे सूरिपद देने को कहा इस पर उसने उत्तर दिया कि-हे भाई ! तू विद्वान तो अवश्य है किन्तु तेरे अभिमानी होने से तू अभी सरिपद के अयोग्य है । इस से वराहने क्रोधित हो कर साधु का वेष त्याग कर फिर से ब्राह्मण वेष को धारण कर लिया ।