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व्याख्यान ३० :
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बिलाड़ी (बिल्ली) कहते हैं वह उस बालक के मस्तक पर आ गिरि और वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हुआ। इस से राजाने वराह का तिरस्कार कर गुरुं से पूछा कि-हे स्वामी ! आपने उसका सात दिन का आयुष्य होना कयों कर जाना? अपितु आपने उसका बिल्ली के मुंह से मृत्यु होना कहा था किन्तु ऐसा नहीं हुआ इसका क्या कारण है ? गुरुने उत्तर दिया कि-बिल्ली के मुंह से ही उसकी मृत्यु हुई हैं। यदि आप को यकीन न हो तो उस अर्गला के अग्रभाग को देखिये कि उस पर बिल्ली का चित्र बना हुआ है या नहीं ? आयुष्य के विषय में हमने पूर्व की आम्नाय अनुसार लग्न लेकर शास्त्रानुसार निश्चय किया था जब कि वराहने पुत्रजन्म होने पश्चात् जब दासीने राज्यप्रासाद के ऊंचे भाग पर चढ़ कर घंटा बजाया था तब पुत्रजन्म होना मान कर लग्न लिया था इस से मेरे व उसके लग्न में अन्तर रहा है । यह सुन कर बराह को बड़ा खेद हुआ और उसने समस्त पुस्तकों को जल में फैक देना चाहा, परन्तु सूरिने उसको ऐसा करने से निषेध कर कहा कि-हे भाई ! ये सर्व शास्त्र सर्वज्ञप्रणीत होने से शुद्ध ही हैं । अमंत्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलभनौषधम् । अनाथा पृथ्वी नास्ति,आम्नायाः खलु दुर्लभाः॥१॥
बिना मंत्र का कोई अक्षर नहीं होता, बिना औषध का