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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
कोई मूल नहीं होता और न बिना स्वामी के कोई पृथ्वी का हिस्सा ही होता है परन्तु उनकी आम्नाय होना दुर्लभ है। ___ आदि बातें समझाबूझा कर सूरिने उसको शान्त किया। फिर एक दिन राजाने सूरि तथा ब्राह्मण को पूछा कि-आज क्या नई बात होगी यह बतलाइये ? वराहने उत्तर दिया कि-आज सायंकाल को अमुक स्थान पर अकस्मात् जलवृष्टि होगी और निश्चित मंडल में एक बावन पल का मत्स्य आकाश से गिरेगा । फिर मूरिने उत्तर दिया कि-इनका कहना सत्य है परन्तु इक्कावन पल का मत्स्य गिरेगा और वह मंडल के बाहर पूर्व दिशा में गिरेगा । सायंकाल को गुरु के कथनानुसार ही हुआ अतः राजाने जैन धर्म को अंगीकार किया, वराहने खेदित हो तापसी दीक्षा ग्रहण की और अज्ञान कष्ट कर आयुष्य के क्षय होने पर मर कर व्यंतर हुआ । पूर्व के द्वेष के कारण उसने साधुओं को उपद्रव करने का विचार किया किन्तु ऐसा करने में अपने आप को अशक्त पाकर उस दुष्टने श्रावकों में रोग उत्पन्न करना आरम्भ किया । श्रावकोंद्वारा यह वृत्तान्त सुन कर गुरुने उपसर्ग मात्र को नाश करनेवाले उपसर्गहर स्तोत्र बना श्रावकों को मदैव उसका पठन करने को कहा जिससे वह व्यंतर श्रावकों को मी कोई कष्ट न पहुंचा सका । उस “उवसग्गहर" स्तोत्र का आज