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व्याख्यान २९ :
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होशियार ब्राह्मण को भेजा जो चितोड़गढ़ पहुंच कर ग्राम में घूमता हुआ अर्धश्लोक बोल बोल कर पुकारने लगा कि
इदानीं वादिखद्योता, द्योतन्ते दक्षिणापथे । ___ अब दक्षिण देश में वादीरूपी पतंगिये प्रकाश करते हैं। इन दो पदों को सुन कर सिद्धसेन दिवाकर (सूर्य) की बहिन सरस्वतीने सूरि के मरण का निश्चय कर कहा किनूनमस्तंगतो वादि, सिद्धसेनो दिवाकरः ॥१॥
अहों ! इस ब्राह्मण के दो पदों से नक्की वादी सिद्धसेन दिवाकर (सूर्य) का अस्त होना सिद्ध होता है ।
फिर ब्राह्मणने सर्व वृत्तान्त सचमुच कह सुनाया जिस को सुन कर सर्व संघ अत्यन्त शोकातुर हुआ।
जिस प्रकार सिंह की दहाड़नी (गर्जना) सुन कर बड़े बड़े हाथियों का मद झर पड़ता है उसी प्रकार सिद्धसेन दिवाकर के शब्द सुन कर न्यायशास्त्र में प्रविण वादियों का भी गर्व नष्ट हो जाता था। इत्युपदेशप्रासादे द्वितीयस्तंभे एकोनत्रिंशत्तम
व्याख्यानम् ॥ २९॥