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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : भिक्षुर्दिदृक्षुरायातस्तिष्ठति द्वारवारितः । हस्तन्यस्तचतुःश्लोकः किंवागच्छति गच्छति ॥१॥
भावार्थ:--कोई भिक्षुक आप से मिलना चाहता है। द्वारपाल के रोक देने से वह द्वार खड़ा हुआ है। उसके हाथ में चार श्लोक हैं अतः उत्तर दीजिये की वह सभा में आवे या वापस लौट जावे ?
इस के उत्तर में गजाने एक श्लोक लिख कर भेजा किदीयते दशलक्षाणि, शासनानि चतुर्दश । हस्तन्यस्तचतुःश्लोकः यद्वागच्छतु गच्छतु ॥१॥
भावार्थ:-जिस के हाथ में चार श्लोक हों उसको दश लाख रुपये और चौदह ग्राम दिये जाते हैं अतः अब आना चाहते हो तो आइये और जाना चाहते हो तो जाइये।
उसे पढ़ कर सूरि राजसभा में गये और राजाद्वारा बतलाये हुए आसन पर उसके सन्मुख बैठ कर चारों दिशायों में घूम कर एक एक श्लोक पढ़ा। राजा प्रत्येक श्लोक के बोलने पर दिशा बदल बदल कर बैठा अर्थात् चारों श्लोकों के बोलने पर उसने चारों दिशाओं में मुंह किया। वह श्लोक इस प्रकार था । अपूर्वेयं धनुर्विद्या, भवता शिक्षिता कुतः । मार्गणौघः समभ्येति, गुणो याति दिगन्तरम् ॥