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व्याख्यान २९ :
भी मेरी ये त्रुटी नहीं निकाल सकता हैं । ऐसा विचार कर वह तुरन्त ही सुखासन से उत्तर कर गुरु के पैरों में गिर पड़ा। अपने प्रमाद की अलोचना कर राजा की आज्ञा ले अपने गुरु के साथ वहां से विहार किया ।
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कुछ समय पश्चात् वृद्धवादी स्वर्ग को सिधारे, फिर एक बार " मग्गदयाणं " इत्यादि प्राकृत भाषा के सूत्र बोलते हुए लोगोंने हँसी उडाई जिस से लज्जित होकर तथा बाल्यकाल से ही संस्कृत का अभ्यास होने से और कुछ कर्म के वश से गर्वित सिद्धसेन सूरिने संघ के समक्ष कहा कि- मैंने संघ की अनुमति से प्राकृत भाषा में रचे हुए सिद्धान्तों की संस्कृत भाषा में रचना की है। इस पर संघने कहा कि-
बालस्त्रीमन्दमूर्खाणां नृणां चारित्रकांक्षिणाम् । अनुग्रहार्थं तत्त्वज्ञैः, सिद्धान्तः प्राकृतः कृतः ॥ भावार्थ:-- चारित्र के अभिलाषी बाल, स्त्री, मन्द और मूर्ख मनुष्यों के उपकार के लिये तत्त्वज्ञोंने सिद्धान्त को प्राकृत भाषा में रचा है ।
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और बुद्धिमान के लिये तो चौदह ही पूर्व संस्कृत भाषा में ही रचे हुए हमने सुना है, अतः हे सूरि ! तुमने श्री जिनेश्वर आदि की बड़ी भारी आशातना की है, जिसके लिए तुमको बड़ा भारी प्रायश्चित् करना होगा । इस पर सूरिने