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व्याख्यान २९ :
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चोली, चरणों (घाघरा) और चीर इन छ चकारों से सौभाग्यवती स्त्रीयों का शरीर सदैव शोभित होता है।
इस प्रकार मूरि के बोलने पर उनके शब्दों के साथ साथ वे ग्वाल भी गाते हुए नाचते कूदते जाते थे और कहते थे कि-सचमुच इन सूरिने इस ब्राह्मण को हरा दिया। इस प्रकार अपनी निन्दा सुन कर सिद्धसेनने सूरि से कहा कि-हे पूज्य मुझे दीक्षित किजिये । इस पर सूरिने कहा किअब हमें वादविवाद करने के लिये राजसभा में चलना चाहिये । ऐसा कह कर वे राजसभा में गये । वहां पर भी अवसर को समझनेवाले सूरिने सिद्धसेन को पराजित किया इस से सत्यप्रतिज्ञ सिद्धसेनने सूरि के पास दीक्षा ग्रहण की
और अनुक्रम से जैन शास्त्र में प्रवीण होने पर गुरुने उनको सिद्धसेन दिवाकर की उपाधि प्रदान कर अपना स्थान दिया अर्थात् सूरिपद पर स्थापित किया। ___भव्य प्राणियोंरूपी कमल को प्रबोध करने में सूर्य समान वादीन्द्र सिद्धसेनसूरि अवन्ती नगरी में पधारें। उनको सर्वज्ञपुत्र कहते हुए सुन कर उनकी परीक्षा करने के लिये विक्रमार्क राजाने उनको मन से ही नमस्कार किया। सूरिने उनको उच्च स्वर से धर्मलाभ दिया। इस पर राजाने उन से पूछा कि-हे सूरीन्द्र ! मैंने नमस्कार तो किया भी नहीं था फिर अपने मुझे धर्मलाम क्यों कर दिया ? सूरिने