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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : उत्तर दिया कि हे राजा ! यह धर्मलाभरूप आशीर्वाद करोड़ों चिन्तामणि से भी अधिक दुर्लभ है जो हमने तुमको मन से नमस्कार करने के बदले में दिया है । क्यों कि-- xदीर्घायुभव वर्ण्यते यदि पुनस्तन्नारकाणामपि, सन्तानाय च पुत्रवान् यदि पुनस्तत्कुर्कुटानामपि । तस्मात्सर्वसुखप्रदोऽस्तु भवतां श्रीधर्मलाभःश्रिये। ___ भावार्थ:--हे राजा ! तू दीर्घ आयुष्यवान हो, ऐसा यदि आशीर्वाद दिया जाय तो दीर्घ आयुष्य तो नारकीय जीवों को भी हो सकता है, सन्तान के लिये पुत्रवान् हो यदि ऐसा आशीर्वाद दिया जाय तो मुर्गे मुर्गीयों के भी अनेक बच्चे होते हैं, x x x x अतः सर्व प्रकार के सुखों को देनेवाला धर्मलाभरूपी आशीर्वाद तुम्हारी लक्ष्मी को बढ़ाओ।
ऊँचा हाथ कर धर्मलाभरूपी आशीर्वाद देने से सूरि पर संतुष्ट होकर राजाने उसको करोड़ों द्रव्य भेट किया परन्तु उनके निःस्पृह होने से उसने उस द्रव्य को अस्वीकार किया इस से राजाने वह द्रव्य श्रावकों को भेट किया जिन्होंने उसका जीर्णोद्धारादिक कार्य में उपयोग किया।
x इस श्लोक का तीसरा पद हमारे पासवाली मूल प्रतों में नहीं है ।