________________
व्याख्यान २८ :
: २५७ :
यस्मिन् केवलिनो विनिर्मितपरोच्छेकाः सदा
दन्तिनोx राज्यं तजिनशासनं च भवतश्चौलुक्य जीयाचिरम्।
भावार्थ:--हे चालुक्य राजा! जो जिनशासन स्त्रियों के मोक्ष प्राप्ति का विधान करता है, जो श्वेताम्बर (साधुओं) की उल्लासीत कीर्ति से जाज्वल्यमान है, जो सप्त नय सम्ब. न्धी मार्ग के विस्ताररूप भागों का स्थान है तथा जिस में - केवली को भी आहार करने का विधान किया गया है ऐसे जिनशासन तथा तुम्हारे राज्य की चिरकाल जय हो । इस श्लोक में कहे सर्व विशेषण राज्य के पक्ष में भी इस प्रकार उपयुक्त है-जो राज्य शत्रुओं को आराम से नहीं रहने देता, जो गगनतल को श्वेत कर उल्लास पाती हुई कीर्तिद्वारा मनोहर है, जो न्याय विस्तार की रचना करने का घर है तथा जिस में शत्रुओं के उच्छेद करने में निपुण हाथी मौजुद्र ।। ऐसे आप के राज्य की चिरकाल जय हो। ____ तत्पश्चात् दिगम्बर से स्खलित वाणीद्वारा कई प्रकार से अपने मत की पुष्टि कर श्री देवसूरि को उसका उत्तर देने
x यस्मिन् केवलिनो विनिर्जित परीच्छेकास्पदा दातनाऐसा पद भी है ।
१७