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व्याख्यान २८
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लाषा करता है ? क्यों कि-ऐसी अभिलाषा तेरे अनर्थ का ही कारण होगी इसे तू भलीभांति समझ लेना।
इन दोनों श्लोकों को उन्होने उपहासपूर्वक दिगंबराचार्य के पास भेज दिये।
राजा की रानी दिगंबर के पक्ष में थी इसलिये उसने सभ्यजनों को आग्रहपूर्वक ऐसा कह रक्खा था कि-तुम ऐसा कार्य करना कि-जिस से किसी भी प्रकार से दिगम्बर की जय हो । फिर कुमुदचंद्रने अपने वाद का विषय लिख कर इस प्रकार भेजा कि--
केवलि हुओ न भुंजइ, चीवरसहिअस्स नत्थि निव्वाणं । इत्थी हुवा न सिज्झई, इयमयं कुमुदचंदस्स ॥१॥
भावार्थ:--तीर्थंकर केवलज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् आहार नहीं करते, वस्त्र धारण करनेवाले का मोक्ष नहीं होता और स्त्री कोई सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकती यह कुमुदचन्द्र दिगम्बर का मत है। इस श्लोक के जवाब में श्वेताम्बरोंने उत्तर दिया कि-- केवलि हुओ वि भुंजइ, चीवरसहिअस्स अस्थि निव्वाणं ।