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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
किन्तु वह भी ठंडा हो गया । वह बारम्बार भोजन के लिये बुलाने लगी तब उन्होंने कहा कि-अभी दशवें आदमी को प्रतिबोध नहीं हुआ है। इस पर वह वेश्या हँसी कर बोली कि-हे स्वामी ! तब दशवें तुम्ही होजाओ। यह सुनकर नन्दिषेण शीघ्र ही भोगकर्मों के क्षीण होने से उठे और वेश्या के कई मोहक वाक्योंद्वारा आग्रह करने पर भी उसकी कुछ भी परवाह न कर, उसका तृण के सदृश त्याग कर, जिनेश्वर के पास जाकर फिर से दीक्षा ग्रहण की और अपने दुष्कर्म की आलोचना कर नन्दिषेण मुनि अनुक्रम से स्वर्ग सिधारे । ___ हे भव्य जीवों ! जो आगमवाक्यों की युक्ति द्वारा भवाभिनन्दी जीवों को भी प्रतिबोध करते हैं वे नन्दिषेण मुनि के सदृश दिव्य भोगों को भोग कर अनुक्रम से सिद्धि पद को प्राप्त करते हैं। इत्युपदेशप्रासादे द्वितीयस्तंभे षड्विंशतितमं
व्याख्यानम् ॥ २६ ॥
व्याख्यान २७ वा तिसरे वादी प्रभावक के विषय में बलात्प्रमाणग्रन्थानां, सिद्धान्तानां बलेन वा । यः स्यात् परमतोच्छेदी, स वादीति प्रभावकः ॥१॥