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व्याख्यान २८:
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से निकाल कर जैनियों को वापस देश में बुलाये और शिलादित्य राजा को भी फिर से जैन धर्म में दृढ़ किया । ___ हे भव्य प्राणियों ! जिनशासन के प्रभाव की उन्नति करनेवाले मल्लवादी का पवित्र चरित्र सुन कर तुम को भी काव्यादिक की विचित्र लब्धिद्वारा जिनशासन की उन्नति करने में तत्पर रहना चाहिये । इत्युपदेशप्रासादे द्वितीयस्तंभे सप्तविंशतितमं
व्याख्यानम् ॥ २७ ॥
व्याख्यान २८ वां
वादी प्रभावक देवसूरि का दृष्टान्त तर्ककर्कशवाक्येन, बुद्धिशालिमहात्मना । जेतव्या वादिनः सद्यः, शासनोन्नतिहेतवे ॥१॥
भावार्थ:--बुद्धिशाली महात्मा को शासन की उन्नति के लिये तर्क (न्याय) शास्त्र के कर्कश (दुज्ञेय) वचनोंद्वारा वादी को पराजय करना चाहिये ।
इस श्लोक का भावार्थ निम्नलिखित दृष्टान्त से प्रत्यक्ष हैं।
श्री पाटण में जब सिद्धराज राज्य करता था तब कुमुद. चंद्र नामक दिगंबर आचार्य उसकी सभा में आये । राजाने