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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तरः से उसने उसकी माता को पूछा कि-मेरा पिता कौन है ? इस पर उसकी माताने उत्तर दिया कि-मैं नहीं जानती। यह सुन कर पुत्र अत्यन्त लज्जित होकर मरने को उतारु हुआ। उस समय सूर्यने साक्षात् प्रकट हो कर कहा कि-हे वत्स ! मैं तेरा पिता हूँ । जो कोई तेरा पराभव करें तो तू उसको कंकर से मारना । वह कंकर उसको मार कर तेरे पास आजायगा । इस के पश्चात् उस पुत्रने कई बालकों तथा अन्य मनुष्यों को मार डाला । इस पर वल्लभीपुर के राजाने जब उसको बुरा भला कहा तो उसने उसको भी मार डाला और स्वयं शिलादित्य नाम से राजा बन बैठा । अनुक्रम से उसने जैन धर्म को अंगीकार किया और शत्रुजयगिरि पर उद्धार किया।
शिलादित्यने अपनी बहेन का विवाह भृगुकच्छ के राजा के साथ किया, जिसके मल्ल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ ।
एक बार वल्लभीपुर में देशत्याग की प्रतिज्ञापूर्वक राजा के समक्ष वादविवाद होते हुए दैवयोग से बौद्धोंने जैनियों का पराभव किया, अतः जैन मुनि अन्य प्रदेश को चले गये और राजाने बौद्धमत अंगीकार किया। राजा की बहिनने अपने पति के मर जाने से वैराग्य प्राप्त कर उसके मल्ल पुत्र सहित दीक्षा ग्रहण की। मल्लमुनिने महाप्रयास से नयचक्र ग्रंथ प्राप्त कर बौद्धों का पराजय किया इसलिये उनको वहां