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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
उसको अपने मातामह ( माता के पिता) का गुरु जान कर सत्कारपूर्वक ठहरने को मकान का प्रबन्ध किया । फिर वाद करने के लिये राजाने हेमचंद्रसूरि से कहा तो उसने उत्तर दिया कि वादी की विद्या को नाश करनेवाले और वादीरूप हाथी के लिये सिंहसमान श्रीदेवसूरि को बुलवाइये । इस पर राजाने अपने सेवकों को भेज कर देवसूरिने बुलवाया और वादविवाद करने को कहा । राजा के आग्रह से देवसूरिने सरस्वती की आराधना की जिसने प्रत्यक्ष होकर कहा कि - वादीवैताले श्री शान्तिसूरिकृत उत्तराध्ययन सूत्र की वृत्ति में दिगंबर के मतखण्डन के विषय में बतलाये चोराशी विकल्पों का विस्तार करने से दिगंबराचार्य का मुंह बन्द हो जायगा । ऐसा कह कर देवी अदृश्य हो गई। सूरिने अपने रत्नप्रभाव नामक मुख्य शिष्य को दिगंबराचार्य के पास गुप्तरूप से यह जानने के लिये भेजा कि उनकी कौन से शास्त्र में कुशलता है । वह रात्री के समय गुप्त वेष में देव के समान उनके पास गया । कुमुदचंद्रने उससे पूछा कि तू कौन है ? उसने उत्तर दिया कि मैं देव हूँ । कुमुदचंद्र ने पूछा कि- मैं कौन हूँ ? उसने उत्तर दिया कि तूं श्वान है । कुमुदचन्द्रने पूछा कि - श्वान कौन है ? उसने कहा कि- तूं । कुमुदचन्द्रने पूछा कि तू कौन है। उसने उत्तर दिया कि मैं देव
१ ऐसी उनको उपाधि मिली हुई थी ।