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व्याख्यान २७ :
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पूजादि महोत्सव नामक पढ़ने योग्य और देवताधिष्ठित ऐसा जो द्वादशार नयचक्र नामक ग्रन्थ ज्ञानभंडार में है वह किसी को भी मत दिखलाना" बाद अन्यत्र विहार किया। एक बार मल्लमुनिने उसकी माता की अनजान में चुपके से उस पुस्तक को कौतुक से खोला और प्रथम पत्र में प्रथम आर्या इस प्रकार पड़ा । विधिनियमभनवृत्तिव्यतिरिक्तत्वादनर्थकमवोचत्
जैनादन्यच्छासनमनृतं भवतीति वैधर्म्यम् ॥१॥ ___ मल्लमुनिने यह प्रथम आर्या पढ़ा ही था कि-शासनदेवी ने तुरन्त ही उस पुस्तक को हर लिया । यह देख कर मल्लमुनिने अत्यन्त खेदित हो यह सब घटना उसकी माता तथा संघ को यथास्थित कह सुनाई, जिन्होंने उसको बहुत उपालंभ दिया । मल्लमुनि उस ग्रन्थ की प्राप्ति तक छ ही विकृति का प्रत्याख्यान कर केवल वाल का पारणा कर छट्ठ तप करने लगा । चातुर्मास के पारणे के दिन संघने अत्यन्त आग्रह से उसको विकृति ग्रहण कराई। फिर श्री संघद्वारा आराधित श्रुतदेवीने मल्ल साधु की परीक्षा करने के लिये रात्री में आकर उसको कहा कि-'के मिष्टाः १' कौन सी चीज स्वादीष्ठ है ? मुनिने उत्तर दिया कि-"वल्लाः"-वाल ।
इसके छ महिने पश्चात् शासनदेवीने फिर पूछा कि"के न ?-कौन नहीं ? (कौन सी वस्तु मिष्ट नहीं ?) इस पर