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व्याख्यान २७ :
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भावार्थ:-जो (सूरि) प्रमाण ग्रन्थों के बल से अथवा सिद्धान्त के बल से भी परमत का उच्छेद करता है वह वादी प्रभावक कहाता है।
चार्वाकोऽध्यक्षमेकं सुगतकणभुजौ सानुमानं सशाब्द, तद्वैतं पारमार्षः सहितमुपमया तत्रयं चाक्षपादः । अर्थापत्त्या प्रभाकृद्वदति तदखिलं मन्यते भट्ट एतत्, स्वाभाव्ये द्वे प्रमाणे जिनपतिगदिते स्पष्टतोऽस्पष्टतश्च ॥ १॥
भावार्थ:-चार्वाक (नास्तिक) केवल एक प्रत्यक्ष प्रमाण को ही मानते हैं । बौद्ध प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द इन तीन प्रमाण को मानता हैं । परम आर्ष अक्षपाद (न्याय) मतानुयायी प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द और उपमा इन चार प्रमाणों को मानते हैं। प्रभाकर मतानुयायी प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द, उपमा और अर्थापत्ति इन पांच प्रमाणों को मानते हैं, भट्ट मतानुयायी प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द, उपमा, अर्थापत्ति और जैन मतानुयायी तो स्पष्ट तथा अस्पष्ट इन दो प्रमाणों