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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
को ही मानते हैं ( स्पष्ट अर्थात् प्रत्यक्ष और अस्पष्ट अर्थात् परोक्ष - अन्य सर्व प्रमाण इन के अन्तर्गत होते हैं )
ये प्रमाण जिनग्रन्थों में वर्णित हैं, उन ग्रन्थों के आधार से जो परवादी पर विजय प्राप्त करते हैं उनको वादी प्रभावक कहते हैं, इसका भावार्थ मल्लवादीसूरि के चरित्र से प्रत्यक्ष है ।
मल्लवादी प्रबंध
भृगुकच्छ ( भरुच ) नगर में राजा के समक्ष वादविवाद होते हुए बौद्ध साधु बुद्धानन्द ने जीवानन्दसूरि को वितंडा - वादद्वारा जीत लिये । इस से लज्जायुत सूरिमहाराज वल्लभीपुर गये जहां उनकी बहिन दुर्लभदेवी को उसके अजीतशा, यक्ष और मल्ल नामक तीनों पुत्रों सहित प्रतिबोध कर दीक्षा दिलाई । उन तीनों को गुरुने नयचक्रवाद ग्रन्थ के अतिरिक्त अन्य सर्व ग्रन्थ पढ़ाये। उन तीनों में मल्लमुनि विशेष बुद्धिमान हुआ ।
एक बार गुरु महाराजने अपनी बहिने को यह कहा कि - " ज्ञानप्रवाद नामक पांचवें पूर्व में से उद्धरित बारह आरेवाला जिसके प्रत्येक आरे के आरम्भ और अन्त में चैत्य
१ अपनी बहिन साध्वी के सामने मल्लसाधु को कहा, ऐसा प्रभावक चरित्र में है ।