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व्याख्यान ६:
राजाने अनिकापुत्र आचार्य को बुलाकर नरक का स्वरूप पूछा। इस पर सूरिने उत्तर दिया कि-हे राजा! नरक सात हैं, जिस में से पहले नरक में एक सागरोपम की, दूसरे में तीन सागरोपम की, तीसरे में सात की, चोथे में दस की, पांचवें में सतरह की, छठे में बाईस की और सातवीं में तेतीश सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति होती है। उन सातों नरक में पृथ्वी में क्षेत्र से उत्पन्न हुई वेदना होती है । पांच नरक में क्षेत्र वेदना के साथ साथ अन्योन्यकृत वेदना होती है और प्रथम को तीन नरकों में वे दो प्रकार उपरान्त तीसरी परमाधामीकृत वेदना होती है इत्यादि । नरकों का यथार्थ स्वरूप सुनकर राणीने आचार्य से पूछा किअहो! आप को भी मेरे ही समान स्वम आया है या क्या? गुरुने कहा कि-हे भने । मुझे कोई स्वम नहीं आया किन्तु जिनेश्वरप्रणीत आगम से मैं इसका सर्व स्वरूप जानता हूँ । राणीने पूछा कि-हे पूज्य ! कौन से कर्मों से प्राणी नरक में जाता है ? गुरुने कहा कि-महा-आरंभादिक कार्यों के करने और विषयसेवनादिक से जीव नरकगामी होता है। इत्यादि उपदेश सुनकर राजाने उसको विसर्जन किया।
दूसरी रात्रि को उक्त देवताने पुष्पचूला को स्वप्न में स्वर्ग के सुख बतलाये । वह वृत्तान्त भी राणीने राजा से कहा तो उसने सर्व दर्शनियों को बुलाकर स्वर्ग का स्वरूप पूछा । इस के उत्तर में उन्हीने कहा कि-मनोवांच्छित सुख