________________
व्याख्यान २२ :
: १९७ : उनके अंड की गोलिये खोज लेते हैं। फिर उन गोलियों का उपरोक्तानुसार उपयोग कर वे समुद्र में से रत्न ग्रहण करते हैं। गौतम ! उस सुमति का जीव परमाधार्मिक के भव से चव कर वह अंडगोलिक मनुष्य होगा। इस प्रकार सात भव कर के अनुक्रम से व्यन्तर, वृक्ष, पक्षी, स्त्री, छट्ठी नरक में नारकी और कुष्टी मनुष्य ऐसे भवों में अनन्त काल तक परिभ्रमण कर अन्त में कर्मों का क्षय कर चक्रवर्ती पद प्राप्त कर प्रव्रज्या ग्रहण कर मोक्ष को प्राप्त करेगा। उस नागिलने तो उसी भव में बाईसवें तीर्थकर के पास दीक्षा ग्रहण कर मुक्तिपद प्राप्त किया है। (यह प्रबन्ध महानिशीथ के चोथे अध्ययन में विस्तारपूर्वक वर्णित है।)
इस सुमति के वृत्तान्त को पढ़ कर भव्य प्राणियों को कुशील की प्रशंसा का निरन्तर त्याग करना चाहिये, क्यों कि ऐसा करने से ही वह दुर्गति को प्राप्त हुआ है और शुद्ध समकित से सुशोभित नागिलने उसी भव में उत्तम संगति से मोक्ष पद को प्राप्त किया है। इत्यब्ददिनपरिमितोपदेशप्रासादवृत्तौ द्वितीयस्तंभे द्वाविं
शतितमं व्याख्यानम् ॥ २२ ॥