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व्याख्यान २३ :
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देती है कि - यह नहीं, यह नही, यह नहीं, नहीं, नहीं, ना, ना ना ना, इन में से तो यह कोई नहीं है (क्योकिं वे तो सब कलंकी हैं') परन्तु यह तो क्रीडा करने को प्रवृत्त हुआ भूपति भोज देव है ।
यह काव्य सुनकर भौज राजा बहुत प्रसन्न हुआ और धनपाल से कहा कि - हे पंडित ! मैं इस से बहुत प्रसन्न हुआ हूं इसलिये वरदान मांग । यह सुनकर धनपालने कहा किहे स्वामी ! यदि आप प्रसन्न हुआ हैं तो मेरी ली हुई वस्तु मुझे वापस लोटाइयें । राजाने कहा कि- मैने तो तेरा कुछ भी नहीं लिया । धनपालने कहा कि हे नाथ ! तुमने
१ नम्दी शब्द से यह नन्दराजा है ? नहीं वह तो महालोभी था यह तो उदारहृदय है । मुरारी या कृष्ण है ? नहीं वह तो काला था यह तो उज्वल है । रति का स्वामी कामदेव है ? नहीं वह तो अंग रहित है जब कि यह तो शुभ देहवाला है । नल राजा है ? नहीं वह तो जुगारी था यह तो व्यसन रहित है । कुबेर हैं ? नहीं वह तो पराधीन है यह तो स्वा
धीन है । विद्याधर है ? नहीं वह तो आकाश में भ्रमण करता
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है, यह तो जमीन पर विचरण करता है । सूरपति है या इन्द्र है ? नहीं वह तो श्रापित है, यह तो श्राप रहित है । विधु या चन्द्र है ? नहीं वह तो कलंकी है, यह निष्कलंक है । ब्रह्मा है ? नहीं वह तो वृद्ध है जब कि यह तो युवा है ।