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व्याख्यान २३ :
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झरते हुए मद का लालायित भ्रमरसमूह कभी भी कुत्ते के मुँह में से निकलती हुई लार पर लीन नहीं होता।
यह सुन कर राजा उन पर विशेष क्रोधित हुआ । आगे बढ़ने पर पुरद्वार के समिप राजाने एक सम्पूर्ण शरीर से कम्पायमान वृद्ध स्त्री को एक बालिका के हस्त का अवलम्बन कर सन्मुख आते देख कर पंडितों से प्रश्न किया कि यह वृद्धा हाथ और पैर क्यों कंपाती है ? इस पर एक पंडित ने उत्तर दिया कि--
कर कंपावइ सीर धुणे, बुढ्ढी काहु कहेई । हंकारता यमभडां, नंनंकार करेई ॥१॥
भावार्थ:--हे राजा! आप का जो यह प्रश्न है कि यह वृद्धा हाथ और सिर कंपाती है इसका क्या कारण है ? इसका यह उत्तर है कि-वह उसको पुकार नेवाले यमदूतों से कह रही है कि नहीं, नहीं, मैं नहीं आती हूं। उसी समय किसी अन्य पंडितने कहा कि-- जरायष्टिप्रहारेण, कुब्जीभूता हि वामना। गततारुण्यमाणिक्य, निरीक्षते पदे पदे ॥१॥
भावार्थ:--वृद्धावस्थारूपी लकड़ी के प्रहार से झूकी